Birsa Munda History / Birsa Munda Biography
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Birsa Munda History । Birsa Munda Biography |
Birsa Munda History । Birsa Munda Biography
आज के समय मे कोई ऐसा झारखंड का व्यक्ति नही होगा जो भगवान बिरसा मुंडा को नही जानता होगा । झारखंड के आंदोलनकारियों द्वारा भगवान के रूप में पूजे जाने वाले इस महान क्रांतिकारी ने अंग्रेजों के विरुद्ध सशक्त हिंसक क्रान्ति का शुरुआत की । वे अन्याय के प्रतिकार, सामाजिक समानता और स्वतंत्रता की लड़ाई के प्रतीक थे। बिरसा मुण्डा आदिवासियों के लिए महानायक ही नही, वे उनके भगवान भी थे ।
कौन थे बिरसा मुण्डा जिसे आदिवासी समाज के लोग भगवान मानते है
पूरा नाम | बिरसा मुंडा |
अन्य उपनाम | दाऊद मुंडा , बिरसा भगवान , धरती आबा |
जन्म | 15 नवम्बर 1875 ई. |
जन्म स्थान | जिला -राँची , अनुमण्डल -खूँटी, ग्राम -उलिहातू |
गुरु | आंनद पांडे |
अभिभावक | सुगना मुंडा |
नागरिकता | भारतीय |
मृत्यु | 9 जून 1900 ई. |
मृत्यु स्थान | राँची जेल |
प्रसिद्धि | क्रान्तिकारी |
विशेष योगदान | बिरसा का सबसे महत्वपूर्ण जनजातीय आंदोलन उलगुलान आंदोलन |
अन्य जानकारी | 1895 ई. में अलौलिक घटना के बाद उन्हें लोग भगवान का अवतार मानने लगे थे। |
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जीवन परिचय
बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवम्बर 1875 ई. को रांची जिले के खूंटी अनुमण्डल के उलिहातू नामक गाँव में एक मुण्डा आदिवासी सुगना के घर हुआ था । बृहस्पतिवार को जन्म लेने के कारण उनका नाम ‘बिरसा’ रखा गया और मुंडा उनकी जाति थी । बचपन से ही वे बहुत प्रतिभाशाली थे । बिरसा के गुरू का नाम आंनद पाण्डे था जिनके साथ वह तीन साल तक रहा । उनको बाल्यकाल से ही ब्रिटिश शासन से बहुत चिढ़ था । आदिवासी को ब्रिटिश शोषण से मुक्त करना, धर्म की रक्षा करना, समाज मे आ रही पुरानी कुरीतियों को दूर करना, निर्धनों ओर दुर्बलो की सहायता करना बिरसा के जीवन का मुख्य लक्ष्य था ।
राजनीतिक जीवन और विद्रोह
बिरसा के जीवन मे सन 1886 से 1890 ई. के दौरान एक मोड़ आया जिसमे उनको लगा कि ईसाई के प्रभाव में रह कर वह अपने धर्म का अन्त कर रहा है । और उसने ईसाई धर्म को छोड़ कर पुनः पुराने धर्म मे जाना सही समझा । लगभग उसी समय सरदार आंदोलन की भी शुरुआत हुई थी और वह स्कूल छोड़ कर उस आन्दोलन में जाया करता था यह देख कर उसके पिता ने स्कूल छुड़वा दिया क्योंकि वह अब ईसाई स्कूल का विरोधी बन चुका था । सरदार आंदोलन की वजह से उसके दिमाग मे ईसाई लोगो के प्रति विद्रोह की भावना आने लगी थी । अब बिरसा पूरी तरह से सरदार आंदोलन में शामिल हो गए थे क्योंकि अब उनका स्कूल भी छूट गया था । वे अब लगातार अपने पारम्परिक रीतिरिवाजों के लिए लड़ना शुरू कर दिए थे । आदिवासियो के जमीन लेने और लोगो को ईसाई बनाने जैसे चीजो से बिरसा बहुत ही प्रभावित हुए । जिसके कारण उनके मन मे अंग्रेजों के प्रति क्रोध की भावना और भी ज्यादा भड़क उठी ।
वर्ष 1894 ई. में बिरसा ने तीर उठाया और संघर्ष की एक नई लड़ाई की शुरुआत की । वास्तव में बिरसा आदिवासियों की परम्परागत जमीन पर जमींदारों द्वारा कब्जा किये जाने का बहुत बड़ा विरोधी था । जमींदारों द्वारा जमीन पर कब्जा किये जानने से आदिवासी दिनों दिन भूमिहीन होते जा रहे थे । लगातार उनके दैनिक जीवन और खान पान में अंग्रेजों का रोक टोक बढ़ता ही जा रहा था । वे लोगों को समझते कि छोटा नागपुर हमारा है, हमारे पूर्वजों ने इसे बनाया है । 1अक्टूबर 1894 ई. को जंगल कानून के विरोध में विशाल आदिवासी जन समूह का नेतृत्व बिरसा ने किया और कहा ।
‘अंग्रेजों और जमीनदारो को भगाओ, उनको जंगल का मालगुजारी मत दो’
Birsa Munda History । Birsa Munda Biography
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बिरसा के आखरी दिनों का समय
9 जनवरी 1900 ई. को डोम्बाबुरब में आदिवासियों का नेतृत्व करते हुए एक विशाल जन समूह का आहवान किया । इस विद्रोह का दमन करने के लिए 3 फरवरी 1900 ई. को बिरसा मुंडा को उनके साथियों के साथ गिरफ्तार कर लिया जब वे अपने आदिवासी गोरिल्ला सेना के जंगल मे सो रहे थे । लगभग 460 आदिवासियों को उस समय गिरफ्तार किया गया था ।
9 जून 1900 ई. को रांची जेल में बिरसा का रहस्यमय तरीके से मौत हो गयी कहा जाता है कि उनकी मौत जहर देने की वजह से हुए । परन्तु ब्रिटिश सरकार ने मौत का कारण हैजा बताया जबकि उनमे हैजा का कोई लक्षण नही था। मात्र 25 वर्ष की उम्र में उन्होंने आदिवासी के संघर्ष किया जिसके बाद बिहार, झारखण्ड और ओड़िसा की सारी जनता आज भी याद करती है ।
बिरसा के अन्य नाम
‘दाऊद मुण्डा’ , ‘दाऊद बिरसा’ , ‘बिरसा भगवान ‘ तथा ‘धरती आबा’
बिरसा मुण्डा की पूरी जानकारी
बिरसा मुण्डा आदिवासी लोगो के लिए महानायक ही नही, उनके लिए भगवान थे। बिरसा मुंडा का सारा जीवन काल संघर्ष में व्यतीत हुआ । जल, जमीन और पानी को बचने के लिए बिरसा ने उलगुलान नामक एक महान क्रांति को जन्म दिया । ब्रिटिश सरकार के खिलाफ बिरसा ने लगातार संघर्ष किया ।
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